वैदिक ज्योतिष में रत्नों का एक विशेष महत्व होता है हालांकि रत्नों का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करना चाहिए किंतु रत्नों के अलावा हम वैदिक ज्योतिष में मंत्रों के उच्चारण से भी काफी हद तक ग्रहों को शांत कर सकते हैं और ग्रहों के प्रभाव को बढ़ा सकते हैं यह बात सोचने और विचार विमर्श करने योग्य है क्योंकि पत्रिका में लग्नेश पंचमेश और नवमेश के रत्नों को आजीवन धारण किया जा सकता है किन्तु त्रिषडाय भावों के स्वामी जैसे कि षष्टेश अष्टमेश और द्वादश भाव के स्वामियों के रत्नों को धारण नहीं किया जाता शुभ ग्रहों को रत्नों के द्वारा और बीज मंत्रों के द्वारा प्रसन्न किया जाता है किंतु अशुभ ग्रहों के स्वामियों को हमेशा दान के द्वारा ही प्रसन्न किया जाता है उनके रत्न पहनना हमेशा वर्जित होता है। गोमेद रत्न राहु ग्रह को शांत करने के लिए पहना जाता है यदि आपकी पत्रिका में राहु मेष राशि वृषभ राशि मिथुन राशि कर्क राशि कन्या राशि वृश्चिक राशि मकर राशि कुंभ राशि में विराजमान है और यदि राहु अष्टम भाव द्वादश भाव और षष्टम भाव में विराजमान है तो गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है। यदि आपकी पत्रिका में राहु लग्न भाव पंचम भाव सप्तम भाव नवम भाव दशम भाव और द्वादश भाव में है तभी गोमेद रत्न धारण करने से राहु के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है और इस बात का सदैव स्मरण रहे कि अशुभ ग्रहों के रत्न पहनने से पहले उन्हें 3 दिन के लिए विशेष सावधानी के तौर पर पहने यदि उनके कोई अशुभ फल देखने को मिलते हैं तो तुरंत उन्हें पहनना बंद कर दें हालांकि मैंने अपने चैनल के माध्यम से यह समझाने की पूर्ण कोशिश की है कि रत्नों की अपेक्षा बीज मंत्र ज्यादा फलित होते हैं और अच्छा फल प्रदान करते हैं तो बेहतर सदैव यह होगा कि आप रत्नों को ना पहन कर उनके बीज मंत्रों का जाप करें राहु के बीज मंत्र का जाप सदैव श्रेष्ठ होता है जिनकी संख्या 72 हजार है। गोमेद रत्न धारण करने के पश्चात राहु के फलों के लक्षण देखे जा सकते हैं क्योंकि राहु एक राक्षस ग्रह है और एक अशुभ ग्रह है वैदिक ज्योतिष में राहु को सबसे अशुभ ग्रह माना जाता है अतः इसके प्रभाव और लक्षण अलग भी हो सकते हैं यदि आप किसी भी प्रकार के अशुभ लक्षणों को देखते हैं तो तुरंत ज्योतिषाचार्य से संपर्क करना चाहिए।।
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